स्वयं का होना
स्वयं का होना
पर्याप्त नहीं है
क्यों हैं किसके लिए हैं
इसमें नैराश्य का भाव है
अकेलेपन का अहसास है,
अपने उपयोगी होने पर सवाल है
अपने अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह है
स्वयं का कुछ होना
सकून देता है
स्वयं को भी
अपनो को भी
और दूसरों को भी
लेकिन यदि स्वयं कुछ नहीं हैं
तब किसी के लिए आप कुछ नहीं हैं
लेकिन कुछ होने के लिए
बहुत कुछ खोना पड़ता है
दूसरों की अपेक्षाओं पर
खरा उतरना पड़ता है
अपनों के लिए भी
स्वयं का कुछ होना
जरुरी है वरना
चाहे अपनों के या परायों के लिए
स्वयं का होना कोई मायने नहीं रखता
जब तक खुद का कुछ होना
साबित नहीं हो जाता।