ग़ज़ल
सारा चमन गुलाब था अश्कों में ढल गया ।
था बारिशों का दौर समंदर मचल गया ।।
रुसवाईयां तमाम थीं दिल में मलाल थे ।
देखा जो हुस्न आपका पत्थर पिघल गया ।।
खुशबू बनी हुई है अभी तक दयार में ।
महबूब मेरा ख्वाब में आकर टहल गया ।।
कैसा नशा था इश्क़ में मदहोशियों के बीच ।
जो भी थे दफ़्न राज़ वो पल में उगल गया।।
जब मैं जला तो लोग बहुत जश्न में मिले ।
जैसे किसी नसीब का सिक्का उछल गया ।।
कहता था है ये आग का दरिया न इश्क कर।
सुनता हूँ चैन भी तेरा है आजकल गया।।
कच्ची सी बस्तियोंं में हैं सस्ते जवाहरात ।
कीचड़ के आस पास में देखा कंवल गया ।।
महफ़िलमें क्या नज़र मिली जोआपसे हुजूर।
मुद्दत के बाद दिल भी हमारा बहल गया।।
उसने कहा था साथ निभाएंगे उम्र भर ।
इंसान चन्द रोज में कितना बदल गया ।।
मिलती कहाँ दुआ है मुहब्बत के वास्ते ।
आई कभी खुशी तो दिवाला निकल गया ।।
वो जिस्म था कि आग यही सोचते रहे ।
जब भी गया करीब लहू तक उबल गया ।।
— नवीन मणि त्रिपाठी