कविता

कविता – अरमानों की भट्टी

अरमानों की भट्टी हर पल,
हरएक के दिल में जलती है।
चाहे सब कुछ मिल जाता है;
फिर भी कुछ बाते खलती है…
ख्वाहिश पूरी कभी न होती,
गिरते रहते व्यर्थ ही मोती:
चले गए अगणित मतवाले…….
मन संतोषी सदा सुखी है,
सुखी झोपडी  वाले रहते…
कल की चिंता आज भी करते,
उस चिंता से अब भी गलते…..
देखे बहुतों को रस्ते चलते,
अपनी करते हाथ मलते…..
जो जितना छोटा है उतनी,
उसकी वैसी चाह सिमटती…..
बडे हुए ; धनपति कुबेर सम,
उनकी चाहे अब भी बढ़ती……
और कमाने चलते रहते,
अरमानों की खातिर जाने
कैसे कैसे ढलते रहते…

हरीश कुमार धाकड़

हरीश कुमार धाकड़

गांव पोस्ट स्वरूपगंज, तहसील-छोटीसादड़ी, जिला-प्रतापगढ़ (राजस्थान)