कविता

दशानन

महाज्ञानी,
धर्मकर्म का ज्ञाता,
… था दशानन !
आज फिर,,,
दशहरे में सजा
उसका पुतला
देख रहा था
*अनेकाननों* को
जो छुपा अपनी
ओछी मानसिकता,
राग – द्वेष,
मद -लोभ और तृष्णा !
बन न्यायधीश,
गर्वित नज़रों से
कर रहे थे इंतजार
उसके जल जाने का !!

अंजु गुप्ता

*अंजु गुप्ता

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