कविता

संवाद…

जरूरी नहीं
तन्हाईयों का होना
भीड़ में भी
संवाद करता है मन
अपनेआप से

हर पल एक मौन स्वर
शब्द बनकर
देता है आवाज
पसरे मन के विलुप्त घेरे में
अनगिनत हजारों
अच्छे बुरे ख्याल लेते है जन्म

समाज परिवार से जुडी
अनुकूल बातें
विचारों का रूप लेकर
व्यवहारिकता में उतर आती है

पर कुछ ऐसी दिलकश बातें भी
आते है ख्यालों में जो
मन को भीतर ही भीतर
देते है सुकून

उन बातों में वक्त बिताना
उसके एहसासों में
प्रेम महसूसना मन को भाता है

लेकिन फिरभी
मन के इस प्रेममय संवाद को
होना होता है तत्क्षण नष्ट

क्योंकि किसी रिश्ते में होने पर
उसके समर्पण में
तन और मन
दोनों ही पवित्रता होती है अहम।

*बबली सिन्हा

गाज़ियाबाद (यूपी) मोबाइल- 9013965625, 9868103295 ईमेल- [email protected]