गीत/नवगीत

गीत-“देखो-देखो यह खिला चाँद”

देखो-देखो यह खिला चाँद.
क़िस्मत से मुझको मिला चाँद.

पहले चाहों में साथ रहा.
मेरी राहों में साथ रहा.
जब खिड़की खोली कमरे की,
घंटों बाँहों में साथ रहा.
मन झील सरीखा है अब भी,
है जहाँ रहा झिलमिला चाँद.

फिर पड़ी अमावस दूर गया.
पर ख़ुशियाँ दे भरपूर गया.
मैं तन से मन तक दमक उठा,
वो इतना देकर नूर गया.
जब भी नभ में देखूँ, लगता-
है वहाँ रहा खिलखिला चाँद.

माना उससे अब दूरी है.
लेकिन उसकी मजबूरी है.
फिर भी वो मिलने आयेगा,
उम्मीद मुझे यह पूरी है.
है दूर भले ही मुझसे पर,
रखता अब भी सिलसिला चाँद.

डॉ. कमलेश द्विवेदी
कानपुर
मो.09415474674