उस रावण जैसी मर्यादा नहीं रखते आज के रावण,
कानून क्या, ईश्वर से भी नहीं डरते आज के रावण।
मारीच के जैसे स्वांग रचाकर जग में घूमते रहते ये,
रक्तबीज जैसे हैं, मारे से नहीं मरते आज के रावण।
शूर्पणखा की नाक से भी बड़ी है इनकी कामवासना,
हर रोज एक नई सीता को हैं हरते आज के रावण।
आज की मंदोदरी चुप बैठी है, घर उजड़ने के डर से,
इसी खामोशी के कारण तांडव करते आज के रावण।
अहिरावण के जैसे छली राजनेता, देते सुरक्षा कवच,
बाबा रूपी कुबेरों के दम पर गरजते आज के रावण।
लंका की प्रजा सा बना समाज, करता जय जयकार,
इसीलिए निर्भीक हो यहाँ वहाँ विचरते आज के रावण।
सुलक्षणा बनी हनुमान, कलमाग्नि से लंका जलाने को,
इसकी ब्रह्मास्त्र सी कलम को अखरते आज के रावण।
— डॉ सुलक्षणा