लघुकथा

साक्षात्कार

एक बीस बाइस वर्ष का युवा भरे बाजार में साइकिल चलाता गुज़रता है, जहां भीड़ का अंत नहीं । वह घंटी टनटनाता तेज रफ़्तार आता है। वह समझता है कि घंटी सुनकर सब उसे रास्ता दे देंगे।  भीड़ अपनी निकलने की राह बनाती जैसे तैसे चलती जा रही है। सवार एक बूढ़े के पैर को कुचलता गुजर जाता है।  बूढ़ा दर्द से चिल्लाता है  ” हाय अंधे ,मार डाला ” . साइकिल सवार दस गज़ पीछे आता है साइकिल पर से उतरकर गुर्राता है ,” साले खूसट ,अँधा किसे कहा ? ” बूढ़ा पैर हिला भी नहीं पा रहा था। कराहते हुए बोला , ” देखकर नहीं चलता। ऊपर से गाली दे रहा है ? ” साथ में उसकी साठ वर्षीया बीबी थी।  वह पति का बचाव करती हुई बोली ,” इतनी भीड़ में साइकिल चला रहे हो ? यहां सड़क तो नहीं। ”

अब तक लड़का मारने की तैयारी कर चुका था।  स्त्री की तेज आवाज़ पर दो चार खड़े होकर तमाशा देखने लगे। वह खीसें निपोरकर गन्दी तरह से हंसा और बोला ,” आप इतनी स्मार्ट न होतीं तो दो झापड़ मारता इसे। मुझे अँधा कह रहा है। उमरवाला है तो घर बैठे न।  ”
       वह सभ्रांत अधेड़ युगल अपनी इज़्ज़त के मारे सर झुकाये चुप हो रहे। पति को अकेले  सहारा देती उस महिला के आँखों में आंसू थे। एक तीनपहिये वाले से कहा अस्पताल ले चल।
—  कादम्बरी मेहरा 

*कादम्बरी मेहरा

नाम :-- कादम्बरी मेहरा जन्मस्थान :-- दिल्ली शिक्षा :-- एम् . ए . अंग्रेजी साहित्य १९६५ , पी जी सी ई लन्दन , स्नातक गणित लन्दन भाषाज्ञान :-- हिंदी , अंग्रेजी एवं पंजाबी बोली कार्यक्षेत्र ;-- अध्यापन मुख्य धारा , सेकेंडरी एवं प्रारम्भिक , ३० वर्ष , लन्दन कृतियाँ :-- कुछ जग की ( कहानी संग्रह ) २००२ स्टार प्रकाशन .हिंद पॉकेट बुक्स , दरियागंज , नई दिल्ली पथ के फूल ( कहानी संग्रह ) २००९ सामायिक प्रकाशन , जठ्वाडा , दरियागंज , नई दिल्ली ( सम्प्रति म ० सायाजी विश्वविद्यालय द्वारा हिंदी एम् . ए . के पाठ्यक्रम में निर्धारित ) रंगों के उस पार ( कहानी संग्रह ) २०१० मनसा प्रकाशन , गोमती नगर , लखनऊ सम्मान :-- एक्सेल्नेट , कानपूर द्वारा सम्मानित २००५ भारतेंदु हरिश्चंद्र सम्मान हिंदी संस्थान लखनऊ २००९ पद्मानंद साहित्य सम्मान ,२०१० , कथा यूं के , लन्दन अखिल भारत वैचारिक क्रान्ति मंच सम्मान २०११ लखनऊ संपर्क :-- ३५ द. एवेन्यू , चीम , सरे , यूं . के . एस एम् २ ७ क्यू ए मैं बचपन से ही लेखन में अच्छी थी। एक कहानी '' आज ''नामक अखबार बनारस से छपी थी। परन्तु उसे कोई सराहना घरवालों से नहीं मिली। पढ़ाई पर जोर देने के लिए कहा गया। अध्यापिकाओं के कहने पर स्कूल की वार्षिक पत्रिकाओं से आगे नहीं बढ़ पाई। आगे का जीवन शुद्ध भारतीय गृहणी का चरित्र निभाते बीता। लंदन आने पर अध्यापन की नौकरी की। अवकाश ग्रहण करने के बाद कलम से दोस्ती कर ली। जीवन की सभी बटोर समेट ,खट्टे मीठे अनुभव ,अध्ययन ,रुचियाँ आदि कलम के कन्धों पर डालकर मैंने अपनी दिशा पकड़ ली। संसार में रहते हुए भी मैं एक यायावर से अधिक कुछ नहीं। लेखन मेरा समय बिताने का आधार है। कोई भी प्रबुद्ध श्रोता मिल जाए तो मुझे लेखन के माध्यम से अपनी बात सुनाना अच्छा लगता है। मेरी चार किताबें छपने का इन्तजार कर रही हैं। ई मेल [email protected]