साक्षात्कार
एक बीस बाइस वर्ष का युवा भरे बाजार में साइकिल चलाता गुज़रता है, जहां भीड़ का अंत नहीं । वह घंटी टनटनाता तेज रफ़्तार आता है। वह समझता है कि घंटी सुनकर सब उसे रास्ता दे देंगे। भीड़ अपनी निकलने की राह बनाती जैसे तैसे चलती जा रही है। सवार एक बूढ़े के पैर को कुचलता गुजर जाता है। बूढ़ा दर्द से चिल्लाता है ” हाय अंधे ,मार डाला ” . साइकिल सवार दस गज़ पीछे आता है साइकिल पर से उतरकर गुर्राता है ,” साले खूसट ,अँधा किसे कहा ? ” बूढ़ा पैर हिला भी नहीं पा रहा था। कराहते हुए बोला , ” देखकर नहीं चलता। ऊपर से गाली दे रहा है ? ” साथ में उसकी साठ वर्षीया बीबी थी। वह पति का बचाव करती हुई बोली ,” इतनी भीड़ में साइकिल चला रहे हो ? यहां सड़क तो नहीं। ”