“साली रस की खान”
सम्बन्धों का है यहाँ, अजब-गजब संसार।
घरवाली से भी अधिक, साली से है प्यार।।
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अपनी बहनों से नहीं, करते प्यार-अपार।
किन्तु सालियों से करें, प्यारभरी मनुहार।।
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जीजा-साली का बहुत, होता नाता खास।
जिनके साली हैं नहीं, वो हैं बहुत उदास।।
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साली से है अनुराग है, सालों से ससुराल।
साली जीजा का रखे, सबसे ज्यादा ख्याल।।
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साली जीजा के लिए, होती है अनुकूल।
लगती उसकी गालियाँ, जीजा जी को फूल।।
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साली के बिन तो लगे, सूना सब संसार।
सम्बन्धों का सालियाँ, होती हैं आधार।।
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छोटी हो चाहे बड़ी, साली रस की खान।
इसीलिए तो सब करें, साली का गुणगान।।
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साली है ऐसा सुमन, जिसमें है मकरन्द।
साली की तो गन्ध से, मिल जाता आनन्द।।
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जब करती हैं सालियाँ, खुलकर हँसी मजाक।
घरवाली यह देखकर, रह जाती आवाक।।
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आधी घरवाली नहीं, कहना इसको मित्र।
रखना हरदम चाहिए, आपना साफ चरित्र।।
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)