कविता

दिखावा

लोग दिखावा करते हैं
कि वह मानते हैं भगवान को
जब की असलियत यह होती है
कि वह मानते नहीं इंसान को
इतना ढोंग,इतना पाखंड
इतना धूर्त धोखा करके
इंसान इतना अमानूष हो गया है
बेटी बहन सब रिश्ते को तार-तार कर दिया है
किसी भी धर्म मजहब का हो सभी
में है विकृत मानसिकता के लोग
उसे इस बात की भी अनुभूति नहीं है
कि वह किसकी पूजा कर रहा है
जब भी गुजरता हूं किसी भी गली से
ऐसे ही मिल जाते हैं मुझे विकृत मानसिकता के लोग
मैं क्यों कहता हूं विकृत?
इसके पीछे बहुत बड़ा सवाल है
सवाल यह है कि उन्हें मालूम ही नहीं
वह क्या कर रहे हैं ?
लोग दिखावा करना एक स्वाभाविक सी कूपमंडूकता है
और कूपमंडूकता का अर्थ तो
आप समझते ही होंगे
सही सही शब्दों में बताऊं
तो आदमी उस प्रकार के मेंढक के
समान हो गया है वह कुएं में रहता है
और मान लेता है कि यही सारी दुनिया
जबकि दुनिया बहुत बड़ी है
मैं विचलित हो जाता हूं
ऐसे लोगों को देख कर
मेरी मस्तिष्क की जो त्रिज्या है हिल जाती है
रोक नहीं पाता मैं अपने शब्दों को
कह देता हूं तनिक भी हिचकिचाता नहीं

 

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733