गीतिका : शहर की फ़िज़ां
विषैली हवा चली मेरे शहर में।
दम तोड़ रही पीढ़ी मेरे शहर में।।
कारखानो की चिमनियाँ देखिये।
जहर उगलने लगी मेरे शहर में।।
कटने लगे हैं सभी शजर शहर में।
सिर्फ धुँआ ही बचा मेरे शहर में।।
बस्तियाँ बीमार है मेरे शहर में।
गंदगी फिर पनपी मेरे शहर में।।
दवा और दुआ ही शेष रही अब।
हर शख्स ठगा सा मेरे शहर में।।
कवि राजेश पुरोहित