यादें….
कचोटता है मन मेरा अंदर से
खासकर पर्व त्यौहार के मौके पर
अकस्मात ही !
याद आ जाती है माँ पापा की
उनके ममत्व का सान्निध्य।
मन में उल्लास भर देता था
हर छोटी -बड़ी खुशियों की चाह
माँ के आंचल और पिता के
स्नेहरूपी आसमान में
भरती थी चाहतों की उड़ानें
मेरी हर नटखट चुलबुली सी ख्वाहिशें
होती थी मम्मी पापा के लिए अहम
आखिर घर में छोटा होने का महत्व
उन्होंने ही तो जतलाया था प्यार से
और इसे बढ़ावा भी मिलता गया
शादी से पहले तक मेरे बड़े भैया
और भाभी के समर्थन द्वारा
फिर तो और सभी भाई बहनें भी
मेरी नाज-नखरें उठाने को थे राजी
आखिर एक सच भी था इन सबके बीच
मेरी खिलखिलाती हुई हंसी
जो सबके मन को मोह कर आपसी
प्रेम की डोर से बाँधे रखता था
ओह, भुलाए नहीं भूला जा रहा
वो अनमोल खजाने जैसा दिन
मन उदास खोए जा रहा उन पलों में
रोने लगी है आँखे अपनों से दूर होकर
जीवन का एक ख़ास हिस्सा छिन गया
जिंदगी के पन्ने से
बहते चले जा रहे आंसू लगातार
भर गया हो जैसे आँखों में
यादों का सैलाब…