हिन्द महासागर
मैं कारक जीवन उत्पत्ति का
विद्युत का विस्तृत स्रोत हूँ ।
जलधि, नीरधि वारिधि बनकर
मानव संस्कृति का मैं देव हूँ।
दिया आश्रय मैंने सबको
भेद न माना ऊँच नीच का।
मेरा यह विस्तृत आकार
बना आश्रय हर प्राणी का।
चाँद मेरा अभिन्न साथी है
देख उसे सम्मोहित होता हूँ।
उससे दूरस्थ रहकर भी मैं
लेश मात्र न खेद करता हूँ।
देख सागर का भव्य रूप
हृदय अति विभोर हुआ।
जल ही जल चारों तरफ
जलमय जग जीवन हुआ।
ओर छोर नहीं नीरधि का
जल में जलधि क्रीड़ा थी।
दूर क्षितिज पर दिनकर की
आनंदमय अद्भुत लीला थी।
थे बीच बीच में छोटे टापू
तरु तरुवर से आच्छादित।
थे केवट कुटिया की शोभा
झूम रहे होकर आनंदित।
सिमटी दुनिया केवट की
विस्तृत जल के चहुँओर।
निर्भीक हो रहता केवट
दिग दिगंत मचाते शोर।
होता खारा वारिधि वारि
प्यासे जीव बुझाते प्यास।
रहता हर पल ही गतिवान
हर प्राणी को इसकी आस।
— निशा गुप्ता
तिनसुकिया, असम