अभिलाषा
अभिलाषा
तपता रहूं आवे में
जैसे कुम्हार के बनाए आवे में तपते हैं
मटके ,दिये!!
संघर्ष जारी है पग पग
लहू का कतरा कतरा पुकारे
दे दूंगा बलिदान हिंदी मां तेरे लिए!
नहीं अभिलाषा
अमरत्व की !
स्वामित्व की !
सर्वश्रेष्ठ की!
यह है बस सिद्धांतों की
एक सिपाही की भांति
उबलता लहू रक्त रंजित नेत्र
जिसकी कर्मभूमि युद्ध क्षेत्र
अमूक भी बोलेगा
दिग्गजों का मंच भी डोलेगा
जब नवांकुरों के मुख से साहित्य लब खोलेगा