आलोक का गीत
अँधियारे से लड़कर हमको,उजियारे को गढ़ना होगा !
डगर भरी हो काँटों से पर,आगे को नित बढ़ना होगा !!
पीड़ा,ग़म है,व्यथा-वेदना,
दर्द नित्य मुस्काता
जो सच्चा है,जो अच्छा है,
वह अब नित दुख पाता
किंचित भी ना शेष कलुषता,शुचिता को अब वरना होगा !
डगर भरी हो काँटों से पर,आगे को नित बढ़ना होगा !!
झूठ,कपट,चालों का मौसम,
अंतर्मन अकुलाता
हुआ आज बेदर्द ज़माना,
अश्रु नयन में आता
जीवन बने सुवासित सबका,पुष्प सा हमको खिलना होगा !
डगर भरी हो काँटों से पर,आगे को नित बढ़ना होगा !!
कुछ तुम सुधरो,कुछ हम सुधरें,
नव आगत मुस्काए
सब विकार,दुर्गुण मिट जाएं,
अपनापन छा जाए
औरों की पीड़ा हरने को,ख़ुद दीपक बन जलना होगा !
डगर भरी हो काँटों से पर,आगे को नित बढ़ना होगा !!
— प्रो. शरद नारायण खरे