गीतिका : चूड़ियों के विविध रंग
अभिसार में किसी के खनकती हैं चूड़ियाँ ।
परिणय की सेज पर तो महकती हैं चूड़ियाँ ।।
जिनके कई हैं रंग, और रूप भी कई,
प्रियतम नहीं हैं पास, बिलखती हैं चूड़ियाँ ।
आये बलम विदेश से तो खिल उठे अधर,
तो तोड़ सारे बंध, मचलती हैं चूड़ियाँ ।
जब रात में नयन से नींद दूदूर रहे तब ,
यादों में संग नेह, बहकती हैं चूड़ियाँ ।
जब रैन हो मिलन की,गीत जब जगे नया ,
हंसती हैं,मुस्कराती,किलकती हैं चूड़ियाँ ।
प्यासी निगाहें खोजती,कोई हमसफर मिले,
मिलता है मन का मीत,तो हंसती हैं चूड़ियाँ ।
अबला समझ के कोई जो,डाले बुरी नज़र,
अस्मत पे अगर वार, बिफरती हैं चूड़ियाँ ।
नारीत्व का वरदान हैं, लज्जा भी हैं ‘नीलम,
श्रंगार के लिए तो, संवरती हैं चूड़ियाँ ।
— डॉ. नीलम खरे