लघुकथा

लघुकथा – लोभ

बाजार पूरी तरह से सजा था, सारी दुकानें खचाखच भरी थीं | भीड़ भाड भी बहुत थी, भीड़ को काबू में करने व बाजार में शांति व्यवस्था बनाये रखने के लिए तमाम पुलिसबल को सरकार ने तैनात कर दिया था, ताकि दिवाली के अवसर पर कोई अप्रिय घटना न घट जाये |

हवलदार प्यारेलाल भी बाजार में अपनी ड्यूटी पर थे | उनके हाथ का सरकारी डंडा हवा में लहर – लहर कर लोगों का पसीना निकाल रहा था | दरअसल लोगों को उनके डंडे का कम गुब्बारे की तरह फूले पेट का डर ज्यादा था, क्योंकि ड्यूटी के रौब में वे कईयों को अपने डंडे का स्वाद चखा चुके थे |

तभी प्यारेलाल जी की निगाह सड़क किनारे जमीन पर पटाखों की दुकान लगाये एक मरियल से 45-50 साल के इंसान पर पड़ी | लाल – हरे – नीले – पीले, लम्बे – पतले, मोटे – तगडें पटाखों को देख प्यारेलाल का लालच जाग गया |

‘क्यों रे ! परमीशन है तेरे पास यहॉ दुकान लगाने का और पटाखे बेचने का?’ हवलदार प्यारेलाल ने अपनी लाल – लाल आंखें दिखाते हुए पूछा |

‘माई – बाप… मैं तो फेरीवाला हूं, त्यौहार का सीजन है, इसलिए आजकल ग्राहक नहीं हैं, सोचा यहॉ मार्केट में भीड – भाड है, दो पैसे कम जायेंगे |’ दुकानदार अपने पिचके पेट पर हाथ रखकर गिडगिडाया |

‘तेरे को यहॉ पटाखे बेचने हैं तो एक बड़ी वाली पोलीथिन में ये वाले…..  वो वाले….. डाल दे, और सुन! शाम को ले जाऊंगा|’ हवलदार प्यारेलाल रौब दिखाते हुए अॉर्डर कर आगे बढ गये |

दूसरे दिन अखबार में न्यूज निकली कि हवलदार प्यारेलाल की बाईक में विस्फोट होने से हो गई मौत !

दरअसल प्यारेलाल ने लोभवश ऐसे चाईनीज पटाखों को भी पैक करा लिया था जो थोडी-सी चोट मारने से भी चल सकते थे और यही हुआ, बाईक पर हिलने-डुलने, झटका लगने से सभी पटाखे एक साथ बड़ा विस्फोट होकर फूट गये | जिसमें प्यारेलाल सहित उनकी बाईक के परखच्चे उड़ गये… |

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा 

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111