गीत : एक युग बीता
एक युग बीता एक युग आया
युग आयेंगे जायेंगे …
जो कर जाते काम सुनहरे
युग-युग गाये जायेंगे…
जी कर भी जो जी ना पाये
नाकामी में दिवस गंवायें
बने रहे जो आये-जाये
बैठ किनारे सोचा करते ,
वो मोती कैसे पायेंगे…
तुमसे आश जगत करता है
मन की गागर वो भरता है
गत इतिहास से डरता है
रीती रह गयी अगर कहीं जो,
फिर से वो पछतायेंगे…
अमिट बनो हस्ताक्षर ऐसा
जो समय से मिटे ना वैसा
राह कठिन घबराना कैसा
लगातार चलने वाले ही,
एक दिन मज़िल पायेंगे…
बात है ये सीधी साधी
ना करनी समय बरवादी
अब तो तीर-कमान हैं साधी
मीनचक्षु लक्ष्य है जिनका
वो द्रोपदि वर के लायेंगे…
— विश्वम्भर पाण्डेय ‘व्यग्र’