गीत/नवगीत

चिंतन गीत

दिल छोटे,पर मक़ां हैं बड़े,सारे भाई न्यारे !
अपने तक सारे हैं सीमित,नहीं परस्पर प्यारे !!

दद्दा-अम्मां हो गये बोझा,
कौन रखे अब उनको
टूटे छप्पर रात गुज़ारें
परछी में हैं दिन को

हर मुश्किल से दद्दा जीते,पर अपनों से हारे !
अपने तक सीमित हैं सारे,नहीं परस्पर प्यारे !!

मीठा बचपन भूल चुके सब,
वर्तमान की बातें
दौलत,धरती,बैल-ढोरवा,
की ख़ातिर आघातें

अपनी करनी से बेटों ने,फैलाये अँधियारे !
अपने तक सीमित हैं सारे,नहीं परस्पर प्यारे !!

खेत सिंच रहे,पर दिल सूखे,
जगह-जगह हरियाली
रिश्ते तो अब रिसते हर दिन,
रची अमावस काली

कोर्ट-कचहरी रोज़ाना ही,ह्रदय-मुकदमे हारे  !
अपने तक सीमित हैं सारे,नहीं परस्पर प्यारे !!

बिलख रहीं चौपालें अब तो,
नीम खड़ा रोता है
पीपल वाला मंदिर भी तो,
रोज़ श्राप देता है

आज वक्त की इस देहरी पर,सब करनी के मारे !!
अपने तक सीमित हैं सारे,नहीं परस्पर प्यारे !!

प्रो. शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]