“दोहा”
विषय आज का मनचला, खेल खेल में खेल
कहीं रातरानी खिली, कहीं खिली है वेल।।-1
सुंदर हैं तारे सभी, गुरु प्रकाश सम आप
मंच मिताई साधुता, साधुवाद बिन ताप।।-2
कड़क रही है दामिनी, बादल सह इतराय
पलक बंद पल में करे, देखत जिय डरि जाय।।-3
क्यों रूठे हो तुम सखे, कुछ तो निकले बैन
व्याकुल विरह बढ़ा रहा, मन नहिं आए चैन।।-4
तनिक बरस भी जाइए, आँगन मेरा सून
गर्मी से राहत मिले, शीतल हो दिन जून।।-5
बारिस भी यह खूब है, बिन मर्जी के होय
कहीं गिरे कहिं धौकनी, बिना रंग की पोय।।-6
किसे कहूँ कैसे लिखूँ, दोहा तुझसे नेह
परबस होती प्रीत है, मानों परमा स्नेह।।-7
गड़बड़ झाला देख के, पड़ा कबीरा बोल
मौसम ऋतु बीरान है, पीट रहे दिग ढ़ोल।।-8
राधा के दर्पण तके, कान्हा हैं चितचोर
मोरपंख सह बाँसुरी, वन में नाचत मोर।।-9
राधा कृष्णा बोलिए, जुगल रूप मकरंद
मंचसीन प्रभु जब हुए, तब आया आनंद।।-10
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी