कविता

कविता

हाय रे गरिबी
कैसा ये जुल्म है
कोई खाकर मरे
तो किसी को
अन्न नही खाने को
क्या कुदरत की माया है
किसी को दिए महल अटारी
किसी का झोपडी निवास बना
किसी को वस्त्र ही वस्त्र
तो किसी को निर्वस्त्र बना दिया
क्या कुदरत की माया है
क्यो जुल्म सहते ये बच्चें
क्या सोचते बिचारते
विधाता ये करम क्यों
दिखाये ये कली को!

बिजया लक्ष्मी

बिजया लक्ष्मी

बिजया लक्ष्मी (स्नातकोत्तर छात्रा) पता -चेनारी रोहतास सासाराम बिहार।