गीत “मधुर वाणी बनाएँ हम”
हुआ मौसम गुलाबी अब,
चलो दीपक जलाएँ हम।
घरों में धान आये हैं,
दिवाली को मनाएँ हम।
बढ़ी है हाट में रौनक,
सजी फिर से दुकानें हैं,
मधुर मिष्ठान को खाकर,
मधुर वाणी बनाएँ हम।
मनो-मालिन्य को अपने,
मिटाने का समय है अब,
घरों के साथ आँगन को,
करीने से सजाएँ हम।
छँटें बादल गगन से हैं,
हुए निर्मल सरोवर हैं,
चलो तालाब में अपने,
कमल मोहक खिलाएँ हम।
सुमन आवाज देते हैं,
चलो सींचे बगीचों को,
चमन मैं आज फिर से,
कुछ नये पौधे उगाएँ हम।
—
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)