ग़ज़ल : बताना मत
जमाने को बताना मत वजह हसने व रोने की |
अपनी हर हकीकत की अपने पाने व खोने की ||
बेदर्दी है जमाना यह बताना न कभी इसको |
खबर सुबह व शामों की खबर जगने व सोने की ||
ये माला के हों या मन के ये मनके तोड़ना जाने |
कभी ज़हमत उठाये न ये मनकों को पिरोने की ||
अँधेरी रात में तो करते हैं ये सब कम काले ये |
उजाले में करें पाखंडता खुद के धर्मी होने की ||
हरेक मसले में ये अपने ही हक़ का ध्यान रखते हैं |
कहाँ सुनते हैं ये बातें किसी के रोने धोने की ||
यहां पापों की खेती हो दिलों में फूलती फलती |
कभी करना न गलती इनके मन में पुण्य बोने की ||
नहीं होते हैं जोहरी जिस नगर में देखना यारो |
वहां कीमत नहीं मिलती किसी को शुद्ध सोने की ||
— अशोक दर्द