ग़ज़ल : भोर की आस
अँधेरी रात में भी भोर की आस रखना तुम |
अँधेरा नित नहीं रहता यही विशवास रखना तुम ||
घृणा की तेज आंधी में कभी न राह भटक जाना |
जलाना प्रेम के दीपक मन में उजास रखना तुम ||
मन में हौसले रखना बड़े सपनों को पाने के |
अपनी उड़ान में ऊँचा सदा आकाश रखना तुम ||
अंधेरों में अमूमन लोग राहें भटक जाते हैं |
किसी मुर्शिद के शब्दों का भीतर प्रकाश रखना तुम ||
संघर्षों ने जमाने को ख़ुशी के गीत बांटे हैं |
गति क़दमों में रखना और सदा विकास रखना तुम ||
नाटक बोझिल न होगा यार तुमको सच सुनाता हूँ |
किरदार में थोड़ा सा ही बेशक परिहास रखना तुम ||
खिजां के मौसमों में भी दर्द कभी उदास न होना |
चाहतों में हमेशा अपनी इक मधुमास रखना तुम ||
— अशोक दर्द