गीतिका/ग़ज़ल

जब कलम को थामती मेरी ग़ज़ल है

जब क़लम को थामती, मेरी गज़ल है।
खूब कहना जानती, मेरी गज़ल है।

पूर होता जब गले तक सब्र-सागर
तब किनारा लाँघती, मेरी गज़ल है।

दीन-दुखियों, बेबसों का हाथ गहकर
हक़ में उनके बोलती मेरी गज़ल है

अंधविश्वासों की परतों को परे कर
रूढ़ियों को रौंदती, मेरी गज़ल है।

नफ़रतों की बाढ़ से बिफरी नदी पर
नेह का पुल बाँधती, मेरी गज़ल है।

हौसले हारे जनों के हिय जगाकर
दुख के कंटक काटती, मेरी गज़ल है।

देशद्रोही, ठग लुटेरों की हरिक नस
‘कल्पना’ पहचानती मेरी गज़ल है।

– कल्पना रामानी

*कल्पना रामानी

परिचय- नाम-कल्पना रामानी जन्म तिथि-६ जून १९५१ जन्म-स्थान उज्जैन (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवास-नवी मुंबई शिक्षा-हाई स्कूल आत्म कथ्य- औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद मेरे साहित्य प्रेम ने निरंतर पढ़ते रहने के अभ्यास में रखा। परिवार की देखभाल के व्यस्त समय से मुक्ति पाकर मेरा साहित्य प्रेम लेखन की ओर मुड़ा और कंप्यूटर से जुड़ने के बाद मेरी काव्य कला को देश विदेश में पहचान और सराहना मिली । मेरी गीत, गजल, दोहे कुण्डलिया आदि छंद-रचनाओं में विशेष रुचि है और रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं और अंतर्जाल पर प्रकाशित होती रहती हैं। वर्तमान में वेब की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘अभिव्यक्ति-अनुभूति’ की उप संपादक। प्रकाशित कृतियाँ- नवगीत संग्रह “हौसलों के पंख”।(पूर्णिमा जी द्वारा नवांकुर पुरस्कार व सम्मान प्राप्त) एक गज़ल तथा गीत-नवगीत संग्रह प्रकाशनाधीन। ईमेल- [email protected]