ग़ज़ल
जिक्र तेरी सुन्दरता और फिर बयाँ उनका
कौन कौन है सच्चा दोस्त इम्तिहाँ उनका |
वज्मे शाह में मय का है अकीद बंदोवस्त
राजदां था’ जो तेरा, अब है’ राज़दां उनका |
ये धरा है उनकी, उन्मुक्त आसमाँ उनका
चर्च और मंदिर जाने नहीं मकाँ उनका |
इस जमीन ऊपर आकाश के सितारें हैं
प्रभु मिलन हो’ गर भू पर एक हो मकाँ उनका |
गैर की मुहब्बत की अब यकींन क्या करते
बेवफा सनम अपना, निकला’ पासबाँ उनका |
वो किये शिकायत आयोग से विरोधी मान
क्या पता था’ निकलेगा शत्रु हमजबाँ उनका |
वीरता सिपाही लिख दूँ या’ पाकि कायरता
जो लिखा, हुआ उससे मर्म खूंचकाँ उनका |
जब चुनाव में जीता तो हिजाब उठना था
बढ़ गया दिखावे के गर्म जोशियाँ उनका |
कालीपद ‘प्रसाद’