गीतिका/ग़ज़ल

कर्म पर जब से मुझे विश्वास करना आ गया

कर्म पर जब से मुझे विश्वास करना आ गया
हार में भी जीत का आभास करना आ गया

ज़िन्दगी भी ज़िन्दगी जैसी लगी मुझको तभी
जब किसी के दर्द का अहसास करना आ गया

तीरगी मन की मिटी तो ये हुआ उसका असर
ज़िन्दगी के हर लम्हे को ख़ास करना आ गया

नोट देकर जब खरीदे वोट पायी कुर्सियाँ
जाहिलों को और फिर बकवास करना आ गया

आ गया जबसे हसीनों को मनाने का हुनर
पतझरों को प्यार का मघुमास करना आ गया

तुम मिले तो ज़िन्दगी फिर ज़िन्दगी लगने लगी
ज़िन्दगी को ज़िन्दगी से रास करना आ गया

तीर अपनो ने चलाये जब हुआ छलनी जिगर
दुश्मनों की बात पर विश्वास करना आ गया

सतीश बंसल
०२.०९.२०१७

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.