ग़ज़ल
ये तमाम उम्र गुजारी है तेरे ख़यालों में
बची है जितनी गुज़र जाएगी सवालों में ।
ग़म ए तन्हाई के अंधेरो ने छुपाया है मुझे
ये राज है के हम मिलते नहीँ उजालों में ।
एक मोहब्बत के अलावा कुछ ज़रूरी नहीं
दिल ए नादा रहा उलझा इन्हीं बवालों में ।
उन्हें खबर क्या ज़हर ए जुवां जान लेवा है
जिगर जो चाक करे दम कहां कटारों में ।
मैं दुआ बनकर तेरे नसीब में उतर जाऊं
सोच लो मिलता है मुझसा कहीं हज़ारों में ।
रहे न हम गर तुमको मलाल होगा सुनो
यकीं है ढूँढोगे हमको यूं कहीं सितारों में ।
फासले और करो लेकिन याद ये रखना
न झरोखा रहे बाकी दिल की दीवारों में ।
हम हैं ख़ामोश जानिब न कुछ कहा मैंने
दर्द रिसता हैं मगर आंखो की दरारों में ।
— पावनी जानिब सीतापुर