कविता

यादें….

कुछ यादें
पुकारती है बहुत दूर से
कभी बचपन से..…
कभी जवानी से….

बनती है आँखों में
धुंधली धुंधली सी तस्वीर कोई
बुदबुदाती है कानों में
यादों की मीठी पुकार

बहुत दूर निकल जाती हूँ
यादों के साए में
पर स्मृतियों के सुनहरे आईने में
सब छिन्न भिन्न बिखरा सा
नजर आता है

वक्त की सरकती रेत पर
थम गए बीते पल
चलते-चलते विराम हो गया
समय की तेज चाल में
बचपन जवानी के किस्से कहानियां

समय की दौर में
बढ़ती उम्र और ख्यालों ने
मन को वजूद को परिपक्व कर दिया
और समझाता रहा लगातार

छोड़ो बचपना
बीते वक्त का मोह
सिर्फ एक परिकल्पना है
हकीकत उम्र की दहलीज पर
वयस्क होने का आगाज करती

जिस उम्र में गलतियां करना
घर-परिवार समाज के लिए
एक शर्मनाक बात कही जाती हैं

पर दिल नहीं समझ पाता इस बात को
जिन्दा है नटखट बचपन
आज भी मन के कोने में
जो कर ही बैठता है कुछ नादान गलतियां।

*बबली सिन्हा

गाज़ियाबाद (यूपी) मोबाइल- 9013965625, 9868103295 ईमेल- [email protected]

One thought on “यादें….

  • फूल सिंह कुम्पावत

    लाजवाब

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