“विधा- दोहा”
रे रंगोली मोहिनी, कैसे करूँ बखान
विन वाणी की है विधा, मानों तुझमे जान।।-1
भाई दूजी पर्व है, झाँक रहा है चाँद
नभ तारे खुशहाल हैं, अपने अपने माँद।।-2
झूम रही है बालियाँ, झलक उठे खलिहान
पुअरा तपते खेत में, कहाँ गए धन धान।।-3
नौ मन गेंहूँ भरि चले, बीया बुद्धि बिहान
पानी छलके खेत में, सैंया मोर किसान।।-4
मौसम बदले शाम को, सर्दी खाँसी छींक
पूनम खिलती चाँदनी, लगती मन को नीक।।-5
मेरे भाई आप है, नेता अति गंभीर
कैसे जल्दी हो गए, धनी कुबेर अमीर।।-6
कुछ तो आप बताइए, कैसे फूले फूल
कुछ दिन पहले आप के, माथे पर थी धूल।।-7
भैया जी सेवा करो, अब तो भर ली जेब
इतना कैसे बढ़ गए, कही न कोई ऐब।।-8
अब तो चिंता हो रही, काले धन की छाप
कुरता भी अति साफ है, नेता साहब आप।।-9
देश विदेशा घूम के, ले ली सगरी सीख
भाई जी मत माँगिए, अब जनता से भीख।।-10
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी