मुक्तक/दोहा

“विधा- दोहा”

रे रंगोली मोहिनी, कैसे करूँ बखान

विन वाणी की है विधा, मानों तुझमे जान।।-1

भाई दूजी पर्व है, झाँक रहा है चाँद

नभ तारे खुशहाल हैं, अपने अपने माँद।।-2

झूम रही है बालियाँ, झलक उठे खलिहान

पुअरा तपते खेत में, कहाँ गए धन धान।।-3

नौ मन गेंहूँ भरि चले, बीया बुद्धि बिहान

पानी छलके खेत में, सैंया मोर किसान।।-4

मौसम बदले शाम को, सर्दी खाँसी छींक

पूनम खिलती चाँदनी, लगती मन को नीक।।-5

मेरे भाई आप है, नेता अति गंभीर

कैसे जल्दी हो गए, धनी कुबेर अमीर।।-6

कुछ तो आप बताइए, कैसे फूले फूल

कुछ दिन पहले आप के, माथे पर थी धूल।।-7

भैया जी सेवा करो, अब तो भर ली जेब

इतना कैसे बढ़ गए, कही न कोई ऐब।।-8

अब तो चिंता हो रही, काले धन की छाप

कुरता भी अति साफ है, नेता साहब आप।।-9

देश विदेशा घूम के, ले ली सगरी सीख

भाई जी मत माँगिए, अब जनता से भीख।।-10

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ