देवोत्थान एकादशी पर विशेष कविता : सवाल
हे देव
तुम क्यों हुए
निद्रालीन ?
क्योंकि,
तुम्हारे निद्रामग्न होते ही
यहां बढ़ गया
ख़ूनख़राबा
तेजी में आ गया
नारी यौन उत्पीड़न
घुलने लगा
साम्प्रदायिकता का ज़हर
हवाओं में
रिश्वतखोरी ने किया
अट्टहास
और
सारी की सारी
अनैतिकताएं
मुस्काराने लगीं
परवान चढ़ने लगी
देशद्रोहिता
और
अवसरवादी भिड़ गए
पूरा करने
अपना स्वार्थ
सारी की सारी
ग़ैर-कानूनी
और
आपराधिक प्रवृत्तियां
उठाने लगीं
सिर
बाग़ के रखवाले ही
उजाड़ने लगे
बाग़ !
हे देव
अब जबकि
तुम चार माह की
दीर्घावधि के बाद
नींद से जाग
गए हो
तो अब बंधी है
उम्मीद कि
अब यह सब
रूक जाएगा !
पर————-
है एक सवाल
एक जिज्ञासा
मनोमस्तिष्क में
एक कुलबुलाहट
और वह यह
कि जब तुम
जाग रहे थे
और सोये नहीं थे
तब भी तो चल रहा था
यही सब
तो क्या अब तुम
इस सबको
रोक सकोगे ?
मुझे तो लगता है
कि तुम कुछ
अब भी कुछ
नहीं कर सकोगे
और जो जैसा
चल रहा था
वो वैसा ही
चलता रहेगा
तो,
इससे तो बेहतर है
हे देव
कि तुम
जाकर फिर से
सो जाओ
कम से कम
तुम अपनी असमर्थता
के लिए
अपनी निद्रामग्नता को
एक बहाना
तो बना सकोगे
और अपने
भक्तों/ श्रध्दालुओं
के सामने
उनके सवालों की बौछार पर
न तो होगे निरुत्तरित
और न ही होगे
शर्मिन्दा !
तो जाओ देव जाओ
तुम फिर से
सो जाओ !
— प्रो. शरद नारायण खरे