गज़ल
खलिश सी दिल में होती है,
जो ज़ेहन में काँटे बोती है,
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मैं रात-रात भर जगता हूँ,
और नींद सिरहाने रोती है,
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मैं तारे गिनता रहता हूँ,
वो चाँदनी ओढ़ के सोती है,
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मुझे कैसे दूर करोगे तुम,
जहां दीपक है वहां ज्योति है,
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बिन तेरे जिंदा रह पाना,
कितनी कठिन चुनौती है,
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आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।