यादें
न जाने क्यों लगता है अब
तुम बदल रहे हो ,
चल रही हैं सांसें मेरी जाने
किस इंतजार में ,
सफर है बाकी बहुत ,
ख्वाबो के साथ ढल रहे हो ।
पैगाम नफरतों का दे रही हैं
यादें किसकी ,
राख है चंद साँसों की या
दौर पुराने बदल रहे हो ।
कायनात चलती ही रहती है
अनवरत प्रेम की तमन्ना
दिल में छिपाये ,
सर्द सा दिल है मेरा ,
क्यों नफरतों के गुबार में
पिघल रहे हो ।
दूरियां हैं सबब मौत का ,
इरादे हों फौलाद के ,
लाख दिल में छिपाये ,
आंसुओं के सैलाब में आज
भी नजर आ रहे हो ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़