गीतिका
बहरा भी सुन रहा है, गूंगा भी गा रहा है
जब कान्हा सुनी बंसी मन बुला रहा है
वो जोश दोस्ती की पल पल घटा रहा है
अनजान हो ज्ञान प्रभु को भुला रहा है
उम्मीद सुबह लू की, सूरज उगा रहा है
कोई बड़ा वहाँ जो, दुनिया चला रहा है
इक उम्र हुई लुभाया है सादगी में इरादा
रातों की आज भी वो नींदें सुला रहा है
किसने किसे लुटा सच्चाई वही दिखाता
झूठा नज़र झुकाये सबकुछ चला रहा है
— रेखा मोहन