दोषी कौन ?
एम्बुलेंस सायरन की तेज आवाज के साथ एक मोड़ लेकर मुख्य सड़क पर दाखिल हुई । एम्बुलेंस में वेंटिलेटर पर अपनी जिंदगी के लिए मौत से जूझती एक क्षीण काया है और साथ ही बैठे हैं उसके कुछ परिजन । मरीज के परिजनों के उम्मीद के मुताबिक एम्बुलेंस के पहिये जब तक तेज गति से घूमते रहे उनकी उम्मीद भी मरीज के स्वास्थ्य के प्रति उतनी ही तेजी से आशान्वित होती रही । वहीं किसी वजह से एम्बुलेंस की गति कम होते ही परिजनों की उम्मीद भी उतनी ही कम होने लगती । चंद मिनटों बाद ही एक चौराहे से पहले लाल सिग्नल देखकर रुकी गाड़ियों को पीछे छोड़ती एम्बुलेंस धीमी गति से आगे बढ़ी कि तभी अगले चौराहे से पहले ही गाड़ियों की लंबी कतार में एक बार फिर उसे थम जाना पड़ा । चालक ने खिड़की से गर्दन बाहर निकालकर सामने तैनात सिपाही से कुछ पुछना चाहा । वह कुछ कह भी नहीं पाया था कि एक तरफ से पुलिस की गाड़ियां और उसके पीछे कई कारों का मंत्री जी का काफिला दनदनाते हुए निकलने लगा । जब तक एम्बुलैंस रुकी रही परिजनों की सांसें भी थमी रहीं । लगभग दो या तीन मिनट बाद ही सिपाही ने एम्बुलेंस को जाने का ईशारा किया । उस दिन सड़क पर हो रहे धरना प्रदर्शन के बीच से राह निकालती एम्बुलैंस के पहिये जब उस बड़े अस्पताल के प्रांगण में रुके उसी के साथ उस मरीज की सांसें भी थम चुकी थीं ।
प्रिय ब्लॉगर राजकुमार भाई जी, यथार्थ को दर्शाती, दिल दहलाती लघुकथा सभी मंत्रियों और विशेष माने जाने वाले नेता-सरीखे लोगों को भी पढ़नी चाहिए, ताकि उनकी आंखें खुलें. इंसानियत के प्रति जागरुक करने वाली, सटीक व सार्थक रचना के लिए आपका हार्दिक आभार.
आदरणीय बहनजी ! सराहना व कहानी पसंद करने के लिए आपका धन्यवाद ।