बढ़ते जाएँगे
भाग्य और पुरुषार्थ का मिल जाए हमें संग हम बढ़ते ही जाएँगे लेकर मन में नई उमंग
ऊर्जावान तरंगों की गति ले कदम बढ़ाएँगे
राह के काँटों को हम कुचलते ही जाएँगे
राह के पत्थर कब तक हमको गिराएँगे
हम गिरकर उठेंगे उठकर बढ़ते ही जाएँगे
मंजिल तक पहुँचना ही जो ध्येय हो हमारा
पहुँच जाएँगे हम वहाँ साथ देगा जग सारा
हम फिर हमारी जीत का उत्सव मनाएँगे
फिर किसी और मंजिल की ओर बढ़ जाएँगे
– नवीन कुमार जैन