लघुकथा

बातों में बात

बात शायद 1952 53 की होगी जब फिल्म आवारा आई थी। उस में राजकपूर ने जो ऊंची पैंट पाई हुई थी, जो कुछ ऊपर को फोल्ड की हुई थी, गाँव के कुछ लड़कों ने भी इस की नक़ल करनी शुरू कर दी थी। गाँवों के लड़के उन दिनों ज़्यादा पाजामे ही पहनते थे, चार पांच लड़के ही थे जो मैट्रिक की पढ़ाई के लिए फगवाड़े जाने लगे थे। और यही लड़के राजकपूर की पैंट की नक़ल करते थे। गाँव के आम लड़के और बज़ुर्ग इन लड़कों को देख कर हंसा करते थे और उन का मज़ाक उड़ाया करते थे। एक दिन किसी के घर में कोई धार्मिक समागम था। इस घर के दो लड़के राज कपूर जैसी पैंटें पहने हुए इधर उधर टौहर से घूम रहे थे। उन की तरफ देख कर एक बज़ुर्ग उन लड़कों को बोला, ” बई जवानों, जो पैसे तुम ने इन पैंटों पे खर्च किये हैं, उन की यह दीवार ही बना लेते जो कच्ची ईंटों की बनी हुई है जो पुरानी और खस्ता हालत में है, कभी भी बारश से गिर सकती है और नीचे कोई आ सकता है ! बज़ुर्ग की बात सुन कर सभी लोग हंस पड़े। बात गई आई हो गई। कुछ दिन बाद जोर की बारश हुई और उस बज़ुर्ग का कहना सच हो गया। दीवार जोर से गिर गई। लोग इकठे हो गए, एक बच्चा उस दीवार से गुज़रा ही था, कुछ सैकंड देर हो जाती तो बच्चा नीचे आ सकता था। सभ ने परमात्मा का शुकर मनाया कि बच्चा बाल बाल बच गया।
कुछ देर पहले मुम्बाई के स्टेशन के एक ओवर ब्रिज क्रॉसिंग पर 22 लोग मारे गए और बहुत से जख्मी हो गए। अब मैं भी बज़ुर्ग हूँ, सरकार से कहता हूँ, भाई यह बुलेट ट्रेन फिर बना लेना, पहले अंग्रेज़ों के छोड़े हुए क्रॉसिंग ब्रिज तो रिपेयर कर लो ताकि और किसी की जान न चली जाए।

4 thoughts on “बातों में बात

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, आपने बातों-बातों में बहुत बड़ी बात कह दी. आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. पहले जो उपलब्ध है, उसीका सही और पूरा उपयोग कर लो, सिर्फ़ नई तकनीक के पीछे पड़ना भी ठीक नहीं है. बहुत सुंदर संदेशमय रचना के लिए बधाई और अभिनंदन. अत्यंत सटीक व सार्थक रचना के लिए आपका हार्दिक आभार.

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      लीला बहन , जो मुम्बई में हुआ ,उसे देख बहुत दुःख हुआ था ,भारत में कितने ओवर ब्रिज होंगे यह तो मुझे पता नहीं लेकिन यह सभ समय के अनकूल नहीं रहे क्योकि आबादी बहुत बढ़ गई है . बुलेट ट्रेनें तो बाद में भी बन सकती हैं लेकिन जो पुराने सटेशन या ओवर ब्रिज हैं उन को रेपेअर करना चाहिए ताकि और लोग इस तरह के हादसे से बच जाएँ .

  • राजकुमार कांदु

    आदरणीय भाईसाहब ! बुजुर्ग जो कहते हैं वह उनके जीवन के अनुभवों का निचोड़ होता है इसलिए उनकी बात गलत नहीं होती और अब आप भी बुजुर्ग हैं सो आप की बात गलत कैसे हो सकती है । आपने सही कहा है बुलेट ट्रेन बाद में भी चल जाएगी लेकिन जो है उसे तो ढंग से चला लें । बहुत सुंदर लघुकथा के लिए धन्यवाद ।

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      धन्यवाद ,राजकुमार भाई . दरअसल क्रॉसिंग पर इतने लोग मारे गए . अगर ब्रिज समय के अनुसार खुल्ला और बड़ा होता तो यह जाने बच सकती थीं . इस बात को सोचना चाहिए किः जब अंग्रेजों ने यह पुल बनाया था तो इस पुल को पार करने वाले इतने लोग नहीं थे .अब आबादी चार गुना बढ़ गई है . बुलेट ट्रेनें तो फिर भी बन सकती हैं लेकिन जो लोगों को दिक्त है वोह तो अब है .

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