ग़ज़ल : मेरी रूह
तेरा मिलना कितना सुहाना लगता है
मुझसे रिश्ता सदियों पुराना लगता है…
देखा जब से तेरे आँखों में सनम
दिल इश्क़ में दीवाना लगता है…
फ़िज़ा में फूल बिखरे चाहत के
मौसम-ए-बहार मस्ताना लगता है..
दरम्यां लाख़ फ़ासले तेरे-मेरे
दिल में आशियाना लगता है…
दर्द-ए-इश्क़ से राहत मिलती
वफ़ा में दिखे परवाना लगता है…
लब खामोश दिल परेशां..साहिब
तड़प में जीते हुए जमाना लगता है…
सांसो से उतर दिल में समाये..
नंदिता का तुझमें ठिकाना लगता है..!!
#नंदिता@