बच्चे
बच्चे खिलते पुष्प हैं, लिये सत्य प्रतिमान !
अंतर्मन परिशुध्द है, लगते देव समान !!
बच्चे सचमुच भेद बिन, नहीं झूठ,ना पाप !
बच्चों के तेजत्व को, कौन सकेगा माप !!
बच्चे होते हैं सरल, हरदम मन के साफ !
इस पल लड़ते,तो करें, अगले पल में माफ !!
बच्चे हरदम ही खिलें, फैले नित्य सुवास !
बच्चों से संसार है, यह मेरा विश्वास !!
बचपन यदि कायम “शरद”, तो महके संसार !
बच्चों से ही दोस्तो, इस जीवन का सार !!
बच्चों पर ना बोझ हो, ना अनुचित प्रतिबंध !
बच्चे कविता,गीत हैं, बच्चे ललित निबंध !!
बच्चे नित ही दोष बिन, बच्चे नेहिल रूप !
बच्चे सूरज,चांद हैं, बच्चे कोमल धूप !!
बच्चों के अधरों पले, इक मोहक मुस्कान !
तभी “शरद” संसार की, रक्षित होगी आन !!
— प्रो. शरद नारायण खरे