ग़ज़ल
टूटी हुई गृहस्थी बसाने की बात कर
अब आपसी रियाज़ निभाने की बात कर
भाषण की आग में जले घर द्वार जिन्दगी
अब छोड़ सब तू आग बुझाने की बात कर
रोते विलखते जीस्त में दुख दर्द है बहुत
मृतप्राय जिंदगी को हँसाने की बात कर
सब बातचीत और समाधान ख़त्म हो
अब शूरता, प्रताप दिखाने की बात कर
गीदड़ की धमकियों से न डरना, दिलेर तू
इस जंग में हमी को जिताने की बात कर
— कालीपद ‘प्रसाद’