“पंक्तिका छंद”
शिल्प~ [रगण यगण जगण गुरु] (212 122 121 2) 10वर्ण प्रति चरण, 4 चरण,2-2 चरण समतुकांत
प्राण नाथ जो आप साथ हों
मोर मोरनी बाग बाग हों
धूम धाम से झूम झूम के
प्यार वार दूं नाच नाच के।।
नाथ आप से प्रात लाल है
ठौर झूमती हाथ ताल है
राम राम जी राम राम जी
नैन नाचते रैन वास जी।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी