ग़ज़ल
नया युग आ गया है अब, असहमति को मिटाना है
नया भारत नया ढाँचा, बनेगा वह निराला है |
वे’ जो नाराज़ हैं उनको, मनाना है दुबारा अब
सभी को साथ लेकर अब हम्ही को दम दिखाना है |
विचारों में जहां दृढ़ता नहीं, आ’वान* चकराए
निभाए हर वचन सब, रहनुमा खंज़र चुभाया है |
वे’ जो दुश्मन है’ भारत का, दिया जिसने पनाह आतंक
उन्हें इसकी सज़ा होगी, विदेशों में भगाना है |
जो’ थाली में किया भोजन, उसी में छेद जो करते
कहे क्या राज द्रोही? तो वही द्रोही मिटाना है |
प्रकृति से मनु किया खिलवाड़, फल तो भोगना है अब
हिमाचल और पर्वत देश को बादल डुबाता है |
अँधेरी रात में उल्लू, न जाने क्यों छुपा “काली”
ये’ भ्रष्टाचार चाहे हो कहीं, उसको मिटाना है |
कालीपद ‘प्रसाद’