हंसी तुम्हारी रहे खनकती , शरमाओ ना ऐसे !
गुल गुलजार सभी कायल हैं , रूप सरसता ऐसे !!
भुजदंडों को कसा है तुमने , कंगना हाथ चढ़ाये !
ताल ठोकने की बारी पर , लरजाये हो कैसे !!
कमर लचीली , आँचल रेशम , जुल्फ हवा लहराये !
नज़र चुराती अँखियाँ डोले , मदमाये हो ऐसे !!
कभी सोच में डूबे लगते , कभी लगे हरषाये !
पलक तुला पर तोल रही हो , लगता है कुछ जैसे !!
चकित भ्रमित मोहित कर डाला , जादूगरी तुम्हारी !
सम्मोहन करना तुम जानो , लगता है अब ऐसे !!
बौछारों में हम भीगे से , रसवर्षा कर डाली !
कभी लगे है समय भीगता , भीगा मौसम जैसे !!
— बृज व्यास
(भगवती प्रसाद व्यास ” नीरद”)