संस्मरण

संस्मरण : बीस पैसा

हमारे लिए गर्मी की छुट्टियों में हिल स्टेशन तथा सर्दियों में समुद्री इलाका हमारा ननिहाल या ददिहाल ही हुआ करता था! जैसे ही छुट्टियाँ खत्म होती थी हम अपने ननिहाल पहुंच जाया करते थे जहाँ हमें दूर से ही देख कर ममेरे भाई बहन उछलते – कूदते हुए तालियों के साथ गीत गाते हुए ( रीना दीदी आ गयीं…… रीना दीदी……..) स्वागत करते थे कोई भाई बहन एक हाथ पकड़ता था तो कोई  दूसरा और हम सबसे पहले  बाहर बड़े से खूबसूरत दलान में बैठे हुए नाना बाबा ( मम्मी के बाबा ) को प्रणाम करके उनके द्वारा पूछे गये प्रश्नों का उत्तर देकर अपनी फौज के साथ घर में प्रवेश करते थे!
घर में घुसते ही हंगामा सुनकर नानी समझ जाया करतीं थीं कि यह फौज हमारी ही होगी इसलिए अपने कमरे से निकल कर बाहर तक आ जाती थीं और हम पैर छूकर प्रणाम करते तो वो अपने हथेलियों में हमारा चेहरा लेकर यह जरूर कहतीं थीं कि कातना दुबारा गईल बाड़ी बाछी हमार  ( कितनी दुबली हो गई है मेरी ) भले ही हम कितने भी मोटे क्यों न हुए हों! तब तक आ जातीं मेरी मामी जो हमें आँगन में चबूतरे पर ले जाकर पैरों को रगड़ रगड़ कर धोती थी जिससे पैरों की मालिश अच्छी तरह से हो जाया करती थी और पूरी थकान छू मंतर !
तब तक नानी कुछ खाने के लिए ले आती थीं जिसे मन से नहीं तो डर से खाना ही पड़ता था क्योंकि हम चाहे जितना भी खा लेते थे लेकिन नानी ये जरूर कहा करती थीं कि इची अने नइखे खात ( ज़रा भी अनाज नहीं खा रही है ) ! खा पीकर अपनी टोली के साथ हम बाहर निकलते तो बहुत से बड़े छोटे भाई बहन मुझे प्रणाम करते हुए चिढ़ाने के क्रम में कहते बर बाबा गोड़ लागेनी… ( बर बाबा प्रणाम) और मैं कुछ चिढ़कर या फिर हँसकर उन्हें भी साथ ले लेती थी और निकल पड़ती थी सभी नाना – नानी, मामा – मामी तथा भाई बहनों से मिलने के लिए !
अब बर बाबा मुझे क्यों कहते थे वे सब यह भी बता ही देती हूँ! हुआ यूँ कि एकबार बचपन में करीब ढाई तीन साल की उम्र में मैं भी ममेरे भाई बहनों के साथ पटरहिया स्कूल  (गाँव के प्राइमरी स्कूल में ) में गई थी! और किसी बात पर किसी से झगड़ा हो गया तो मैं जाकर बर बाबा जो बरगद के पेड़ के नीचे चबूतरे पर पत्थर की पूजा की जाती थी के सर पर बैठ गई थी… तब से मुझे ननिहाल में बर बाबा ही कहकर चिढ़ाया जाता था! पटरहिया स्कूल इसलिए कि काठ की बनी आयताकार काली बोर्ड जिसके ठीक ऊपर छोटा सा हैंडल लगा होता था उसपर चूल्हे की कालिख से जिसे कजरी कहा जाता था पोत दिया जाता था, उसके बाद छोटी शीशी से रगड़कर पटरी को चमकाया जाता था..!  पटरी पर लाइन बनाने के लिए मोटे धागे को चाॅक के घोल में भिगोकर बहुत एहतियात के साथ पटरी के दोनों किनारों पर हाथ में धागा पकड़ कर धीरे से बराबर बराबर रख रख कर छोड़ दिया जाता था उसके बाद पटरी के हैंडल को पकड़कर खूब खूब घुमा घुमाकर गाया जाता था…..
सुख जा सुख जा पटरी
अब ना लगाइब कजरी
उसके बाद उस पर सफेद चाक के घोल से बांस
के पतली लकड़ियों को कलम बनाकर लिखा जाता था |
वैसे तो मेरी मामी बहुत ही शांत स्वभाव की थीं जिनकी हम सबने कभी जोर से आवाज तक नहीं सुनी थी  लेकिन एक दिन अपने करीब  तीन वर्ष के बेटे जो मुझसे आठ वर्ष छोटा है ( मेरे ममेरे भाई) को आँगन में पीटने के लिए दौड़ा रहीं थीं और वह भाग रहा था! यह देखकर मैनें मामी को टोका कि मामी ये क्या कर रही हैं इतने छोटे बच्चे को क्यों दौड़ा रही हैं? तो मामी थोड़े गुस्से में ही बोलीं रीना जी इसको पढ़ने के लिए बीस पैसा महीने में देना पड़ता है और यह है कि पढ़ता ही नहीं है!
मामी का इतना कहना था कि मेरी तो हँसी रुके नहीं रुक रही थी उनका बीस पैसा सुनकर! क्यों कि उस गांव के मेरे नाना ही सबसे धनाढ्य व्यक्ति थे चूंकि उन दिनों गाँवों में अच्छे स्कूलों की सुविधा नहीं थी तो तब तक उसे भी पटरहिया स्कूल में प्रेक्टिस के लिए भेजा जाता था!
 मेरा ममेरा भाई श्याम बिहारी सिंह ( अनु ) पढ़ने में शुरू से ही अव्वल था इसलिए मेरे पापा बलिया लेते आये.. और छठी कक्षा से वह नैनीताल में हास्टल में रह कर पढ़ाई किया… जो आज आर्मी में कर्नल है!
लेकिन आज भी मामी की बीस पैसे वाली बात याद करके मूझे बहुत हँसी आती है!
किरण सिंह

*किरण सिंह

किरण सिंह जन्मस्थान - ग्राम - मझौंवा , जिला- बलिया ( उत्तर प्रदेश) जन्मतिथि 28- 12 - 1967 शिक्षा - स्नातक - गुलाब देवी महिला महाविद्यालय, बलिया (उत्तर प्रदेश) संगीत प्रभाकर ( सितार ) प्रकाशित पुस्तकें - 20 बाल साहित्य - श्रीराम कथामृतम् (खण्ड काव्य) , गोलू-मोलू (काव्य संग्रह) , अक्कड़ बक्कड़ बाॅम्बे बो (बाल गीत संग्रह) , " श्री कृष्ण कथामृतम्" ( बाल खण्ड काव्य ) "सुनो कहानी नई - पुरानी" ( बाल कहानी संग्रह ) पिंकी का सपना ( बाल कविता संग्रह ) काव्य कृतियां - मुखरित संवेदनाएँ (काव्य संग्रह) , प्रीत की पाती (छन्द संग्रह) , अन्तः के स्वर (दोहा संग्रह) , अन्तर्ध्वनि (कुण्डलिया संग्रह) , जीवन की लय (गीत - नवगीत संग्रह) , हाँ इश्क है (ग़ज़ल संग्रह) , शगुन के स्वर (विवाह गीत संग्रह) , बिहार छन्द काव्य रागिनी ( दोहा और चौपाई छंद में बिहार की गौरवगाथा ) ।"लय की लहरों पर" ( मुक्तक संग्रह) कहानी संग्रह - प्रेम और इज्जत, रहस्य , पूर्वा लघुकथा संग्रह - बातों-बातों में सम्पादन - "दूसरी पारी" (आत्मकथ्यात्मक संस्मरण संग्रह) , शीघ्र प्रकाश्य - "फेयरवेल" ( उपन्यास), श्री गणेश कथामृतम् ( बाल खण्ड काव्य ) "साहित्य की एक किरण" - ( मुकेश कुमार सिन्हा जी द्वारा किरण सिंह की कृतियों का समीक्षात्मक अवलोकन ) साझा संकलन - 25 से अधिक सम्मान - सुभद्रा कुमारी चौहान महिला बाल साहित्य सम्मान ( उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ 2019 ), सूर पुरस्कार (उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान 2020) , नागरी बाल साहित्य सम्मान बलिया (20 20) राम वृक्ष बेनीपुरी सम्मान ( बाल साहित्य शोध संस्थान बरनौली दरभंगा 2020) ज्ञान सिंह आर्य साहित्य सम्मान ( बाल कल्याण एवम् बाल साहित्य शोध केंद्र भोपाल द्वारा 2024 ) माधव प्रसाद नागला स्मृति बाल साहित्य सम्मान ( बाल पत्रिका बाल वाटिका द्वारा 2024 ) बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन से साहित्य सेवी सम्मान ( 2019) तथा साहित्य चूड़ामणि सम्मान (2021) , वुमेन अचीवमेंट अवार्ड ( साहित्य क्षेत्र में दैनिक जागरण पटना द्वारा 2022) जय विजय रचनाकर सम्मान ( 2024 ) आचार्य फजलूर रहमान हाशमी स्मृति-सम्मान ( 2024 ) सक्रियता - देश के प्रतिनिधि पत्र - पत्रिकाओं में लगातार रचनाओं का प्रकाशन तथा आकाशवाणी एवम् दूरदर्शन से रचनाओं , साहित्यिक वार्ता तथा साक्षात्कार का प्रसारण। विभिन्न प्रतिष्ठित मंचों पर अतिथि के तौर पर उद्बोधन तथा नवोदित रचनाकारों को दिशा-निर्देश [email protected]