गज़ल
एक बुलबुला फानी है,
चंद साँसों की रवानी है
कभी यहां तो कभी कहां,
जीवन बहता पानी है
दिन हैं सारे उजले-उजले,
और हर शाम सुहानी है
बड़ी कीमती शै होती है,
जिसका नाम जवानी है
मिला है जो वो बिछड़ेगा ही,
यहाँ की रीत पुरानी है
किस-किस का अफसोस करें,
चार दिन ज़िंदगानी है
आज तेरी कल मेरी बारी,
मौत तो सबको आनी है
— भरत मल्होत्रा