गांव घर
चंद्रेश करीब बीस साल बाद अपने गांव लौटे थे। गांव में कदम रखते ही उन्हें एहसास हो गया कि अब बहुत कुछ बदल गया है। पहले की तरह किसी ने ना दुआ सलाम की और ना ही हाल चाल पूँछा।
पिछले पंद्रह साल से वह विदेश में थे। लेकिन गांव घर अभी भी यादों में वैसा ही बसा था। लेकिन यहाँ आकर सारी छवि धूमिल पड़ गई।
घर पहुँचते ही देहरी को देख वह भाव विभोर हो गए। उन्होंने आगे कदम बढ़ाया ही था कि छोटे भाई ने टोंक दिया।
“भइया उधर नहीं। वह मझले भइया का हिस्सा है। मेरा हिस्सा इधर है।”
चंद्रेश का मन यह सुनकर खट्टा हो गया। अब गांव में कुछ भी अपना नहीं था।