गीतिका
सूरज छिपा तो जब अँधेरा भी बढ़ाता आ गया
आभास होते ही लगा रोशन जमाना आ गया
जीवन सदा बीता लगा चाहत निशाना हो बना
अब कर रंज मन में लिया सा जो सुनाना आ गया
सरहद खड़े देखा डटें फोज़ी फसाना आ गया
मुश्किल लगी जाना सभी मन को बताना आ गया
हर कदम पे जो काज अजमा हो सुनाना आ गया
अब शस्त्र को वाजू उठा नीचा दिखाना आ गया
भुल से लगा अपमान जो झेला कभी क्या कायदा
हो फायदा सोंचे सभी को अब जताना आ गया
— रेखा मोहन