ग़ज़ल
अपने हालात देखे हंसी आ गई
ये कहां से कहां ज़िंदगी आ गई
एक नज़र उनकी आज हमपे पड़ी
कि नज़र में हमारी नमी आ गई
दिल रोता रहा मन के वीराने में
क्या मोहब्बत में मेरी कमी आ गई
मेंरे कदम दिल की दुनिया में थे
उन क़दमों तले फिर जमीं आ गई
आपकी बात सुनके रहा न गया
कि बात होंठों पे मेरे तभी आ गई
“जानिब” ये उदासी सही जाए न
काश कोई कहे के ख़ुशी आ गई
— पावनी दीक्षित “जानिब”, सीतापुर