सामाजिक

सही समाज का मूल — मित्रता

अपनी बात कहने के लिए समय और स्थान कभी भी पूरे नहीं पड़ेंगे। कम से कम इस जीवन में तो नहीं।

अधिकांश जीवन बीत गया है अनुभवों को समेटते  और इन अनुभवों में सबसे अधिक कोलाहल करता है विवाहित स्त्री के लिए   मित्रता का अभाव।  एक बार पिता का घर छोड़ा तो बस वह अकेली रह गयी।  उम्र चाहे जो हो पिता माता उसे दुनिया के झंझटों से बचा बचा कर पालते हैं। दुनियादारी की पेंचीदगियों से वह अनभिज्ञ रखी जाती है। हर कोई एक ‘ भोली भाली ‘ सरल स्वभाव लड़की चाहता है।  शिक्षा दी जाती है कि जवाब मत देना ,खिला कर खाना , कहना मानना।  मगर उसकी इन्हीं शिक्षाओं का नाजायज़  फायदा  ससुराल वाले उठाते हैं।  लाख पढ़ी लिखी हो ,अपने धर्म की मान्यताओं से हारी रहती है।
उदहारण के लिए कहा जाता है कि स्त्री को अपने पति को भोजन कराने के बाद खाना  चाहिए।   ठीक है। मगर यह भी क्या बात हुई  कि ऐसा न करनेवाली स्त्री अगले जन्म में सुअरी बनेगी।  कहाँ लिखा है ऐसा ? कौन से हिन्दू शास्त्र में ?
अब हमारे चीनू भाई इसी बात को लेकर झगड़ लिए पत्नी से।  बेचारी दिन भर फैक्ट्री में एक टांग से खड़ी पुर्जों की बेल्ट पर छँटाई का काम करती थी।  उसकी आय के बिना चीनू भाई गुजारा नहीं चला पाते थे।  अगर वह भूखी थी और उसने आते ही खाना खा लिया तो   थाली फेंककर क्लेश करना क्या सभ्यता थी ?
मुझे याद है चाचा के एक दोस्त ने उनको शादी के पहले सीख दी थी , ” यार बीबी पर शुरू में रौब ज़माना बहुत जरूरी है। बाद में चाहे जो करो।  पहली बार थाली फेंक दो ,चाय का प्याला तोड़ दो ,कहो ये क्या लाई है वगैरह।  बस वह सारी ज़िन्दगी तुमसे डरकर चलेगी।   ” चाचा जी ने ऐसा किया या नहीं मगर चाची जैसी शांत ,स्निग्ध नारी नहीं देखी।
यह मित्रता का अभाव भारतीयों के आम व्यवहार में भी देखा जा सकता है। इसमे स्त्रियां और पुरुष समान रूप से अपराधी पाए  जाएंगे।  रेल के डिब्बे में हमारा कूपे आरक्षित था।  गाड़ी अमृतसर से आ रही थी।  दिल्ली में  जब हम चढ़े  तो एक साहिबा हमारी सीट  पर गत्ते  के  डिब्बे ,कागज़ की प्लेटें आदि   पसारकर बच्चे को खाना आदि खिला रही थीं।  स्वयं भी खाया होगा पति पत्नी ने।  उठीं तो सब गन्दगी वहीँ छोड़कर चलती  बनी।  उम्र तीस की या इससे भी कम।  मेरे पति ने अनायास कहा ,” और यह सब कौन उठाएगा ? ” लड़की धृष्टता से पलटी और  हाथ उठाकर बोली ” हाउ डेयर यू टॉक लाइक दिस। यू वांट मी तो स्लैप यू ? ”
अपने से दुगुनी उम्र के व्यक्ति से अंग्रेजी में उलटा चोर कोतवाल को डाँटे।  अगर मैं बीच में न आती तो वह शायद मार भी देती।  मैंने शराफत से पूछा क्या यह सीट आपकी है ?उत्तर में वह बोली कि खाली पडी थी। ठीक मगर अपनी झूठी प्लेटें झूठन आदि वहीँ   छोड़कर जाना क्या ठीक था।  उसका उत्तर था अटेंडेंट को बुलाओ।  अटेंडेंट -खुद को अफसर समझनेवाला –एक कम उम्र के छोकरे को सर पर टीप मारकर काम करने ले आया।  सफाईवाले उस बालक को पैसे हमने दिए।
प्लेटफार्म पर एक अधेड़ उम्र का आदमी ,साफ़ सुथरी शक्ल ,पैंट कमीज पहने ,झाडू लगा रहा था। जगह एकदम साफ़ कर दी कूड़ेदान खाली कर दिया। एक सजा बजा युवक अपनी माता जी ,पत्नी और दो नन्हे बालकों के संग एक बेंच पर जमा हुआ था।  एक कागज़  को उसने पढ़ा और पुर्जे पुर्जे करके वहीँ फर्श पर फेंक दिया।  उसने नहीं देखा कि यह जगह अभी अभी साफ़ की गयी है।  उसने नहीं देखा कि कूड़ेदान सिर्फ दो गज़ पर रखा हुआ है।
मल्टीप्लेक्स में पिक्चर देखने गए हम।  हमारे सामने एक नया जोड़ा  भी क्यू में टिकट ले रहा था।  लड़की के हाथ में चूड़ा था मगर वह पेट से थी। जीन्स और टॉप पहने थी।  शौचालय जाना था मुझे।  टिकट आदि से निमट   कर मैं उस तरफ गयी तो वही लड़की बाहर आई।  मैं उसके बाद ही अंदर घुसी तो देखा  उसने चेन नहीं खींची थी।  मैंने कहा उँह ऊँ। तिसपर वह अंग्रेजी में बोली आंटी पुश  दी  ब्लैक  बटन टु  फ्लश।  अरे भली औरत अंग्रेजी की टांग तोड़नी सीख ली ,अंग्रेजों के जैसा व्यवहार भी तो सीख। कल को बाल बच्चों को क्या सिखाएगी ? अंग्रेज औरतें पहले बच्चे को सही तरीके से टॉयलेट इस्तेमाल करना सिखाती हैं।  किसी गैर को बच्चे को धुलाने नहीं देतीं।  यहां बच्चा होते ही आया की उम्मीद रखती हैं।  कभी गंदे लंगोट नहीं धोतीं। इसे अपनी जात  और शान के खिलाफ समझती हैं।
ऐसे सैकड़ों किस्से मेरी नज़रों से गुजरते हैं जब मैं भारत जाती हूँ। इन सबका अंडर करंट एक ही है। मित्रता का अभाव।  अपनी चमड़ी से आगे न सोंचना।  दूसरे को कमतर समझना। दूसरे की उपेक्षा।   स्वार्थी हमेशा डरा हुआ रहता है। इसीलिये सदा मारने को तत्पर।  अपना काम खुद न करने की आदत के पीछे भी यही मित्रता का अभाव है।  इंग्लैंड में मैंने देखा एक नारा है,  ”आई विल नॉट पे ए डाइम फॉर व्हाट आई कैन डू माइसेल्फ। ” ( जो काम मैं खुद कर सकता हूँ उसके लिए मैं किसी को एक पैसा ना दूँ ) . यहां नौकर को भी हेल्पर कहा जाता है।  और पैसे देने के साथ साथ थैंक यू भी बोलना जरूरी है।  दूकानदार से सामान खरीदते समय  भी प्लीज और थैंक यू कहना जरूरी है।  भिखारी भी दान लेकर थैंक्यू बोलता है।
समय आ गया है हम खुद को जांचें। ध्यान दें कि हम कितने लोगों के उपकार में रहते हैं।  किस किस का अतिक्रमण करते हैं।  किस किस का अहसान लेते हैं।  किस किस की उपेक्षा करते हैं। क्या उनके बिना हमारा काम चल पायेगा।    यदि यह आत्म परीक्षण हमारे अंदर जागेगा तभी हम सफल रिश्ते कायम  कर पाएंगे और अपने आगेवाले नागरिकों को संस्कार दे पाएंगे।  तभी हम विवाह जैसी आवश्यक संस्था के काबिल बन पाएंगे।  यह सोंचना गलत है कि विवाह जरूरी नहीं। समाज की इकाई परिवार ही थी ,है ,और रहेगी। अस्तु
कादम्बरी मेहरा

*कादम्बरी मेहरा

नाम :-- कादम्बरी मेहरा जन्मस्थान :-- दिल्ली शिक्षा :-- एम् . ए . अंग्रेजी साहित्य १९६५ , पी जी सी ई लन्दन , स्नातक गणित लन्दन भाषाज्ञान :-- हिंदी , अंग्रेजी एवं पंजाबी बोली कार्यक्षेत्र ;-- अध्यापन मुख्य धारा , सेकेंडरी एवं प्रारम्भिक , ३० वर्ष , लन्दन कृतियाँ :-- कुछ जग की ( कहानी संग्रह ) २००२ स्टार प्रकाशन .हिंद पॉकेट बुक्स , दरियागंज , नई दिल्ली पथ के फूल ( कहानी संग्रह ) २००९ सामायिक प्रकाशन , जठ्वाडा , दरियागंज , नई दिल्ली ( सम्प्रति म ० सायाजी विश्वविद्यालय द्वारा हिंदी एम् . ए . के पाठ्यक्रम में निर्धारित ) रंगों के उस पार ( कहानी संग्रह ) २०१० मनसा प्रकाशन , गोमती नगर , लखनऊ सम्मान :-- एक्सेल्नेट , कानपूर द्वारा सम्मानित २००५ भारतेंदु हरिश्चंद्र सम्मान हिंदी संस्थान लखनऊ २००९ पद्मानंद साहित्य सम्मान ,२०१० , कथा यूं के , लन्दन अखिल भारत वैचारिक क्रान्ति मंच सम्मान २०११ लखनऊ संपर्क :-- ३५ द. एवेन्यू , चीम , सरे , यूं . के . एस एम् २ ७ क्यू ए मैं बचपन से ही लेखन में अच्छी थी। एक कहानी '' आज ''नामक अखबार बनारस से छपी थी। परन्तु उसे कोई सराहना घरवालों से नहीं मिली। पढ़ाई पर जोर देने के लिए कहा गया। अध्यापिकाओं के कहने पर स्कूल की वार्षिक पत्रिकाओं से आगे नहीं बढ़ पाई। आगे का जीवन शुद्ध भारतीय गृहणी का चरित्र निभाते बीता। लंदन आने पर अध्यापन की नौकरी की। अवकाश ग्रहण करने के बाद कलम से दोस्ती कर ली। जीवन की सभी बटोर समेट ,खट्टे मीठे अनुभव ,अध्ययन ,रुचियाँ आदि कलम के कन्धों पर डालकर मैंने अपनी दिशा पकड़ ली। संसार में रहते हुए भी मैं एक यायावर से अधिक कुछ नहीं। लेखन मेरा समय बिताने का आधार है। कोई भी प्रबुद्ध श्रोता मिल जाए तो मुझे लेखन के माध्यम से अपनी बात सुनाना अच्छा लगता है। मेरी चार किताबें छपने का इन्तजार कर रही हैं। ई मेल [email protected]